बस्तर दशहरा भारत के सबसे अनोखे और बड़े त्योहारों में से एक है। जहां अन्य जगहों पर दशहरा एक दिन का उत्सव होता है, बस्तर में यह पर्व 75 दिनों तक चलता है। इस साल भी मावली परघाव की रस्म धूमधाम से मनाई गई, जिसमें देवी दंतेश्वरी का स्वागत किया गया।
बस्तर दशहरे की खासियत: बस्तर में दशहरे के दौरान रावण जलाने की परंपरा नहीं है। यहां देवी की पूजा की जाती है, और यह त्योहार पुराने समय से चल रहा है। दशहरा का मुख्य आयोजन जगदलपुर में होता है, जहां सैकड़ों भक्त देवी दंतेश्वरी की डोली का स्वागत करते हैं।
रस्म का महत्व: मावली परघाव की रस्म में देवी की डोली को राज परिवार के लोग अपने कंधों पर उठाकर ले जाते हैं। यह रस्म बस्तर की संस्कृति का खास हिस्सा है और इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
उत्सव का माहौल: जगदलपुर में बड़ी संख्या में भक्त और पर्यटक इकट्ठा होते हैं। यहां की गलियों में जगह-जगह स्वागत की तैयारी की जाती है। भक्तों का उत्साह देखकर सभी खुश होते हैं, और हर कोई देवी की डोली के आने का इंतजार कर रहा होता है।
आस्था का अद्भुत नजारा: डोली के स्वागत के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे, लेकिन भक्तों का उत्साह इसे पार कर जाता है। आंगा देव, जो देवी के सुरक्षा देवता माने जाते हैं, पूरे उत्सव में सक्रिय रहते हैं और भक्तों को मदद करते हैं।
संस्कृति की झलक: बस्तर दशहरा न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक महत्त्व भी रखता है। इस पर्व के दौरान आदिम संस्कृति की झलक देखने को मिलती है, जिससे यह दूसरे त्योहारों से अलग बनता है।
बस्तर का दशहरा एक अनोखा अनुभव है जो न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि देशभर से आने वाले पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। यह पर्व बस्तर की समृद्ध संस्कृति और आस्था का प्रतीक है।
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प्रश्न और उत्तर
- बस्तर दशहरा कब मनाया जाता है?
बस्तर दशहरा हर साल 75 दिनों तक मनाया जाता है, जो विशेष रूप से जगदलपुर में होता है। - बस्तर दशहरे में रावण का क्या होता है?
बस्तर में रावण का दहन नहीं होता; यहां देवी की पूजा की जाती है। - मावली परघाव की रस्म का क्या महत्व है?
यह रस्म देवी दंतेश्वरी की डोली का स्वागत करने के लिए होती है, जो बस्तर की संस्कृति का अहम हिस्सा है। - इस पर्व में कौन-कौन भाग लेते हैं?
इस पर्व में सैकड़ों भक्त, पर्यटक और राज परिवार के लोग भाग लेते हैं। - बस्तर दशहरे की खास बातें क्या हैं?
यह पर्व अपनी आदिम संस्कृति, अनोखी रस्मों और देवी की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। - डोली के स्वागत में क्या होता है?
देवी की डोली को राज परिवार के लोग अपने कंधों पर लेकर जाते हैं और इसका भव्य स्वागत किया जाता है। - क्या इस दौरान कोई विशेष सुरक्षा व्यवस्था होती है?
हां, डोली के स्वागत के लिए पुख्ता सुरक्षा इंतजाम किए जाते हैं। - क्या बस्तर दशहरा केवल स्थानीय लोगों के लिए है?
नहीं, यह देशभर से आने वाले पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। - बस्तर दशहरे में किस प्रकार के नृत्य होते हैं?
भक्त देवी की डोली के स्वागत में विभिन्न प्रकार के स्वागत नृत्य करते हैं। - इस पर्व का सबसे बड़ा आकर्षण क्या है?
बस्तर दशहरे का सबसे बड़ा आकर्षण देवी दंतेश्वरी की डोली का भव्य स्वागत और धार्मिक उत्सव का माहौल है।
बस्तर दशहरा: एक ऐतिहासिक पर्व
बस्तर दशहरा केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि यह एक जीवंत परंपरा और संस्कृति का प्रतीक है। यह पर्व छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मनाया जाता है और इसकी जड़ें इतिहास में गहरी धंसी हुई हैं। माना जाता है कि यह पर्व लगभग 600 वर्षों से मनाया जा रहा है, और इसकी परंपराएं पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं।
दशहरे के दौरान, बस्तर में देवी दंतेश्वरी की पूजा की जाती है। यह देवी स्थानीय लोगों के लिए विशेष महत्व रखती हैं और उन्हें श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। अन्य जगहों पर जहां रावण का दहन होता है, बस्तर में देवी की आराधना होती है। इस पर्व में विशेष रूप से “मावली परघाव” की रस्म की जाती है, जिसमें देवी की डोली का भव्य स्वागत किया जाता है।
इस त्योहार के दौरान, स्थानीय लोग पारंपरिक नृत्य करते हैं, जो इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति को दर्शाते हैं। भक्तों द्वारा किए जाने वाले स्वागत नृत्य और विभिन्न धार्मिक गतिविधियाँ इस पर्व को विशेष बनाती हैं।
बस्तर दशहरे का एक और अनोखा पहलू यह है कि इसमें केवल स्थानीय लोग ही नहीं, बल्कि दूर-दूर से आए पर्यटक भी शामिल होते हैं। यह त्योहार बस्तर की अद्भुत संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर को प्रदर्शित करता है।
इस वर्ष, बस्तर दशहरा और भी खास है, क्योंकि इसे और अधिक भव्यता के साथ मनाया जा रहा है। संगठनों और सरकार द्वारा कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिससे यह पर्व और भी रंगीन और जीवंत हो गया है।
बस्तर दशहरा सच में एक अद्भुत अनुभव है, जो न केवल धार्मिकता, बल्कि सांस्कृतिक विविधता का भी प्रतीक है।